Wednesday, April 11, 2018

वर्षा की बौछार...!

शाम अकेली थी
थकी-जीती ज़िन्दगी,
हारी नहीं थी ;)
बच्चों से बतियाकर,
अपने कुत्ते के संग खेलकर,
जब ख़याल आया,
गरम-गरम फुल्के,
और वसंत-प्याज़ की सब्ज़ी,
मारे भूख के दौड़ने लगे चूहे,
फिर एक न देखा इधर-या उधर,
जैसे ही खाने बैठी,
वर्षा की बौछार,
लगी भूमि को तृप्त करने में,
जब तक प्यास रहे अंतर्मन में,
तब तक ही रहे कीमत सब में !
~ फ़िज़ा

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