मेरा हर गुनाह अक्षम्य है!




मुझे सब तोहमतें मंज़ूर हैं,
मेरा हर गुनाह अक्षम्य है,
मेरा अस्तित्व ही भ्रष्ट है,
मुझे मेरी हर सज़ा मंज़ूर है,
मुझे मार दो या काट दो,
मुझे हर रेहम मंज़ूर है,
यूँ जीना इस तरह मेरा,
कम नहीं किसी दंड से,
मौत मेरे लिए है रेहम,
पता है न मिलेगी वो मुझे,
किये हैं जो दुष्कर्म मैंने,
जाएगी मेरे संग रहने,
खुद को न यूँ सज़ा दो,
ये बहुत कठिन मेरे लिए,
रेहम करो ज़िन्दगी पर,
जुड़े हैं ज़िंदगानी तुम पर,
ख़ुशी से सींच लो तुम,
जीवन अपना संवारकर !
~ फ़िज़ा 
#happypoetrymonth

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