इक्कीस साल पहले मुझे क्या पता था,
मैं कहाँ रहूंगी और क्या कर रही हूँगी,
इक्कीस साल पहले अपना शहर छोडूंगी,
वो भी अकेले बिना किसी के सहारे,
सोचा न था कभी इतना लम्बा सफर,
ज़िन्दगी जाने किस मोड़ ले आये,
मोड़ का क्या हर तरफ मुड़ती है,
बस ज़िन्दगी जाने किस से जोड़ती है,
किसे वजह और किसे अपना बनाती है,
फिर नए लोग और नए नाते पनपते हैं,
ऐसे ही दुनिया में लोगों से लोग मिलते हैं,
जाने कहाँ होंगी इक्कीस साल और बाद,
यहाँ, वहां या फिर किसी नए देश में,
ज़िन्दगी साथ देती है तब तक चलेंगे,
नए लोगों से नए रिश्तों से सजायेंगे सफर,
अभी बहुत दूर मुझे और जाना है,
इक्कीस साल का नज़ारा और देखना है,
शायद तब लिख सकूँ या न लिख सकूँ,
यादों के भवंडर में यूँ ही खो जाना है !
~ फ़िज़ा
मैं कहाँ रहूंगी और क्या कर रही हूँगी,
इक्कीस साल पहले अपना शहर छोडूंगी,
वो भी अकेले बिना किसी के सहारे,
सोचा न था कभी इतना लम्बा सफर,
ज़िन्दगी जाने किस मोड़ ले आये,
मोड़ का क्या हर तरफ मुड़ती है,
बस ज़िन्दगी जाने किस से जोड़ती है,
किसे वजह और किसे अपना बनाती है,
फिर नए लोग और नए नाते पनपते हैं,
ऐसे ही दुनिया में लोगों से लोग मिलते हैं,
जाने कहाँ होंगी इक्कीस साल और बाद,
यहाँ, वहां या फिर किसी नए देश में,
ज़िन्दगी साथ देती है तब तक चलेंगे,
नए लोगों से नए रिश्तों से सजायेंगे सफर,
अभी बहुत दूर मुझे और जाना है,
इक्कीस साल का नज़ारा और देखना है,
शायद तब लिख सकूँ या न लिख सकूँ,
यादों के भवंडर में यूँ ही खो जाना है !
~ फ़िज़ा
#happypoetrymonth
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