Thursday, December 25, 2014

ज़िंदगी कल गले मिली थी कुछ देर सेहर...!



ज़िंदगी कल गले मिली थी कुछ देर सेहर
पेहले तो बस देखने-समझने में लग गयी देर 
फिर जब प्यार हुआ आँखों-आँखों में देर-सबेर 
तो देखा वक़्त हो चला था शाम पहुंचने मुंडेर
मैने भी केहा दिया ज़िंदगी से रुक जा कुछ देर 
मानो या ना मानो लगा रुक ही जायेगी कुछ देर , मगर
ढल ही गयी शाम और ज़िंदगी मिलने का वादा कर 
निकल गयी हाथ से यूं जैसे अभी मिलेंगे कुछ देर ज़रूर !
~ फ़िज़ा 

वक्त के संग बदलना चाहता हूँ !

  मैं तो इस पल का राही हूँ  इस पल के बाद कहीं और ! एक मेरा वक़्त है आता जब  जकड लेता हूँ उस पल को ! कौन केहता है ये पल मेरा नहीं  मुझे इस पल ...