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लगता है जैसे हँसते हैं इंसानों पे !

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 जहाँ खुला आसमान उड़ते पंछी देखूँ  लगता है जैसे हँसते हैं इंसानों पे ! वक़्त ऐसा आ चला है जहाँ पर  बिना पिंजरे के बंधी बने हैं लोग ! अब तो हालत ऐसा है जनाब जाना चाहो वापस जाने न दें ! किसी के विरुद्ध क्या बोलोगे अब  कुछ कहने से पेहले ही बोलती बंद ! कटुक नीबूरि कहाँ कनक कटोरी  पिंजर बंध कनक तीलियाँ भी नहीं ! खूब हंसो तुम पंछी खूब हंसों   पैरों पर जो मारी है कुल्हाड़ी ! ~ फ़िज़ा 

ज़िन्दगी !!!

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  ज़िन्दगी जो सालों में न सीखा सकी वो दो साल में सब सीखा गयी  जीना-मरना तो हर किसी को है  मगर कैसे जीना है ये बता गयी ! ज़िन्दगी फूल है खिलकर बिखरना  खिलना अपने दम पे मरना शान से  खुशबु सबकी अलग है भूलना नहीं  मुकाबला करना कभी तो वो खुद से! ज़िन्दगी एक रेल है चलना है काम  स्टेशन आये तो रुक जाना है और  मुश्किलें आये तो सिटी बजाना है  मदत मांगने से कभी डरना नहीं है ! ज़िन्दगी एक आइसक्रीम है मीठी  जिसे खाकर ख़त्म करे दुगना मज़ा  मगर पिघल जाये तो क्या जिया  छोटी सी सही मिठास देकर जाना ! ~ फ़िज़ा