Saturday, August 24, 2024

खुदगर्ज़ मन

 



आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है 

अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है 

फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है 

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


कुछ करने का हौसला बड़ा जगा रहा है 

जीवन का नया पन्ना खोलने को कह रहा है 

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


समझा रहा है बेड़ियाँ तो सब को हैं मगर 

बेड़ियों की फ़िक्र क्यों जीने से रोके मगर 

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


पंछी सा है मन रहता है इंसानी शरीर में 

कैसा ताल-मेल है ये उड़ चलने को केहता है 

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


घूमना चाहता है दुनिया सारी बेफिक्र होके 

जाना सभी ने अलग-अलग फिर क्या रोके?

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


मोह-माया के जाल में न धसना केहता है 

जाना ही है तो मन की इच्छा पूरी करता जा 

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


तू अपनी मर्ज़ी की करता जा खुश रह जा 

दुनिया कहाँ सोचेगी जो तू दुनिया की सोचे है 

आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है !


अब मैंने भी मन से मन जोड़ लिया है 

खुश, आज़ाद रेहने का फैसला कर लिया है 

आजकल मन ही नहीं मैं भी खुदगर्ज़ हो चला हूँ !!


~ फ़िज़ा 


Monday, August 19, 2024

स्त्री !


 

एक मात्र वस्तु की हैसियत रह गयी है 

स्त्री !

जो संसार को पैदा करे अपनी कोख से 

स्त्री !

जिसे संसार पुकारे करुणामयी शक्ति 

स्त्री !

जो वक्त आने पर बन जाये महाकाली 

स्त्री !

त्याग, सहनशील, ममतामयी, कहलाये 

स्त्री !

ईश्वर जैसे महाशक्ति के बाद नाम है तो 

स्त्री !

चोट लगे तब भी देखभाल पोषण करे वो 

स्त्री !

मंदिरों में रख कर उसका अवतार पूजे वो है 

स्त्री !

हर देशवासी कहे भारत है उसकी माँ जो है 

स्त्री !

ये सब होकर भी जो है अबला यहाँ वो है 

स्त्री !

मंदिरों में सजे लक्ष्मी, सरस्वती, पार्वती, हैं ये 

स्त्री !

फिर क्यों शोषित है ये सब करके भी हमारी  

स्त्री !

प्रतिशोध हो इस कदर के डरे हर कोई नाम से 

स्त्री !

खूबसूरत चहरे से पहले उन्हें याद आये प्रतिशोधी 

स्त्री !

वो एक सवेरा कब हो यही सोचे है हर कोई आज 

स्त्री !

क्या इतनी बुरी है जो वेदना से पीड़ित हो हमेशा 

स्त्री ?

सोच-सोच कर बुद्धि भ्रष्ट है कोई सूझे न उपाय 

स्त्री !

क्यों तू अब भी है अबला नारी क्यों नहीं है महाकाली 

स्त्री !

शब्द नहीं मेरे पास और मेरे साथी मेरे कबीलेवासी 

स्त्री !

निसहाय , निर्बल , डरपोक, कमज़ोर, नाज़ुक है 

स्त्री !

~ फ़िज़ा  

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...