सवेरे-सवेरे मीटिंग में जब सुना
कल छुट्टी है क्यूंकि होली है
मन ही मन होली के गुब्बारे
रंगों से भरे दिल में फोड़ आये
मैंने कहा खुद ही से अरे ,
बुरा न मानों होली है !!!!
~ फ़िज़ा
ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
सवेरे-सवेरे मीटिंग में जब सुना
कल छुट्टी है क्यूंकि होली है
मन ही मन होली के गुब्बारे
रंगों से भरे दिल में फोड़ आये
मैंने कहा खुद ही से अरे ,
बुरा न मानों होली है !!!!
~ फ़िज़ा
इस्तेमाल करते हैं हर जगह
मानों कोई एहसान जिस तरह
मदत की उम्मीद करते है कभी
दिलदार समझ कर ही आते हैं
देने वाले का गुरुर जब देखते है
चैरिटी का ओढ़ा चादर उससे
निकलकर नंगा कर देता है
कभी पैसा अँधा करता है
हर कहीं पैसे का शोशा है
अमीर गरीब का खेला है !
~ फ़िज़ा
उसके होंठों से लगे मेरे होंठ
प्यास या हवस की व्याकुलता
जब मिले, कण-कण से बुझाती तृष्णा
होठों से होकर जुबां से गुज़रते हुए
हलक से जब वो गरमा गरम
गुज़रती है तो वो किसी
कामोन्माद से कम नहीं
ये एहसास सिर्फ अनुभव है
आजमा के देखिये कभी !
~ फ़िज़ा
सवेरे-सवेरे मीटिंग में जब सुना कल छुट्टी है क्यूंकि होली है मन ही मन होली के गुब्बारे रंगों से भरे दिल में फोड़ आये मैंने कहा खुद ही से...