तपते हैं धुप में तपते ज़मीन को जोतते हैं
मेहनत जीजान से करके सोना उगलते हैं
धुप-छांव हो बरसात फसल प्यार से उगाते हैं
अपना पेट भरने से पेहले औरों का पेट भरते हैं
सदियों से तो यही है पेशा किसान का जो हैं
बैल-ट्रेक्टर या खुद ही हल-जोतना बीज बोना
काम लगन से करना अपने देश का पेट है भरना
मिटटी से नाता रखने वाले ज़मीन से जुड़े हुए हैं
इसीलिए हर किसी का पेट भरने के बाद भी
किसान खुद भूखा है अनाज से अपने हक्क से
सरकारें आयीं और गए भी हैं गद्दी से कई यूँ भी
देशवासियों की विकास और तरक्की के बहाने
ये वही देश हैं जहाँ नारे लगे थे स्वतंत्र भारत में
'जय जवान जय किसान' वही आज लड़ रहे हैं
कब किसान होगा आज़ाद इन सभी बंधनों से
जहाँ उसे उसका हक़ मिलेगा वो जियेगा चेन से
एक निवाला जब रोटी का डालो अपने मुँह में
ज़रूर याद करना जिसने काटे फसल धान्य के
देश का किसान जब भूखा होगा दुखी होगा ऐसे
तो उस अन्न का क्या हर्ष होगा जो खाएं गर्व से
विभिन्नता में एकता इसी में है सबकी सद्भावना
रहो संग किसानों के यही है मेरे दिल का नारा
~ फ़िज़ा