Tuesday, August 28, 2018

जाग इंसान क्यों दीवाना बना ...!



सुना था जानवर से इंसान बना
मगर हरकतों से जानवर ही रहा  !
इंसान बनकर कुछ अकल्मन्द बना
मगर जात -पात  में घिरा रहा  !
वक़्त बे-वक़्त इंसान ज़रुरत बना
 
वहीं इंसान के जान का प्यासा रहा !
इंसान शक्तिशाली बलिष्ट बना
वहीं जानवर से भी नीचे जा रहा !
समय कुछ इस तरह है अब बना
जानवर से सीखना यही उपाय रहा !
यही तो आदिमानव से इंसान बना
फिर क्यों भूतकाल में बस रहा?
जाग इंसान क्यों दीवाना बना
वक़त सींचने का जब आ रहा !

~ फ़िज़ा

Thursday, August 16, 2018

कहीं आग तो कहीं है पानी ...!


कहीं आग तो कहीं है पानी
प्रकृति की कैसी ये मनमानी
हर क़स्बा, प्रांत है वीरानी
फैला हर तरफ पानी ही पानी
कहीं लगी आग जंगल में रानी
वहीं चाहिए बस थोड़ा सा पानी
मगर प्रकृति की वही मनमानी
संतुलन रहे पर ये है ज़िंदगानी
कहीं लगी है आग तो कहीं पानी 
दुआ करें बस ख़त्म हो ये अनहोनी
कभी नहीं देखी-सुनी ऐसी कहानी
कहीं आग तो कहीं है पानी
प्रकृति की कैसी ये मनमानी !

~ फ़िज़ा

Wednesday, August 15, 2018

ऐसा कहता है इतिहास हमारा

देश की एक सुन्दर छबि
मन में थी बचपन से कभी
कविताओं में तो उपन्यासों में
पढ़े आज़ादी के किस्से मतवाले
शहीदों की दिलेरी एक-दूसरे का दर्द
मानों सारा जहाँ एक परिवार हो
सुनहरे सपनों सा सुन्दर चित्रण
हुआ करता कभी किसी किताबों में
ऐसा कहता है इतिहास हमारा
जाने क्या हो गया उस देश को हमारा
पहले जैसा कुछ भी नहीं है बेचारा
न वो देशभक्ति न ही वो भाईचारा
हर कोई एक-दूसरे के खून का प्यासा
धर्मनिरपेक्ष राज्य था कभी ये प्यारा
अब हिन्दू - मुसलमान जान का मारा
न रहीं वो गलियां गुलजारा
जहाँ करते थे बच्चे खेला कभी
अमवा की वो डाली जिस पर
करती कोयल सबसे मधुबानी
अब तो वो दूकान भी नहीं हैं
जहाँ चाचा मुफ्त में दे दे गोली दो-चार
बहुत दुःख हुआ ये देख हर तरफ
मॉल, फ़ास्ट फ़ूड और विदेशी सामान
अब तो अपने देश में भी न मिले
देश की वो पहचान !!!

~ फ़िज़ा


खुदगर्ज़ मन

  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है  अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है  फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! ...