ऐसा कहता है इतिहास हमारा

देश की एक सुन्दर छबि
मन में थी बचपन से कभी
कविताओं में तो उपन्यासों में
पढ़े आज़ादी के किस्से मतवाले
शहीदों की दिलेरी एक-दूसरे का दर्द
मानों सारा जहाँ एक परिवार हो
सुनहरे सपनों सा सुन्दर चित्रण
हुआ करता कभी किसी किताबों में
ऐसा कहता है इतिहास हमारा
जाने क्या हो गया उस देश को हमारा
पहले जैसा कुछ भी नहीं है बेचारा
न वो देशभक्ति न ही वो भाईचारा
हर कोई एक-दूसरे के खून का प्यासा
धर्मनिरपेक्ष राज्य था कभी ये प्यारा
अब हिन्दू - मुसलमान जान का मारा
न रहीं वो गलियां गुलजारा
जहाँ करते थे बच्चे खेला कभी
अमवा की वो डाली जिस पर
करती कोयल सबसे मधुबानी
अब तो वो दूकान भी नहीं हैं
जहाँ चाचा मुफ्त में दे दे गोली दो-चार
बहुत दुःख हुआ ये देख हर तरफ
मॉल, फ़ास्ट फ़ूड और विदेशी सामान
अब तो अपने देश में भी न मिले
देश की वो पहचान !!!

~ फ़िज़ा


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सच अब पहले जैसी बात कहाँ !

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