वो भी क्या दिन थे...!
वो भी क्या दिन थे जब खुलकर मिला करते थे
अब मुस्कुराने से झिझकते हैं कहीं मसला न हो जाये !
एक वक़्त था जब घंटों बातें होती खूब हँसते गाते
अब तो बात नहीं बहस के लिए मुद्दे का होना ज़रूरी है !
एक समय सब अपनी राय साझा करते सुन लेते थे
अब तो सबकी राय में हाँ न मिलाये तो गद्दार कहलाते है !
जीवन के पथ पर बहुत कुछ सीखा और समझा है
खुश रहने के लिए चीज़ें नहीं चंद खास की ज़रुरत होती है !
कम हैं दोस्त और दोस्ती भी कहाँ है आजकल किसी से
बस 'फ़िज़ा' रिवायतें है जो निभाई जाती हैं मज़बूरी में जैसे !
~ फ़िज़ा
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