तो क्यों न कहीं भटक आते हैं...!

नींद आजकल अच्छी आती है,
मगर जाने का नाम न लेती है,
किसी ख्वाब में ले जाती है,
मानों भटकाना चाहती है,
ख्वाब मगर अच्छी आती है,
धुंदली यादों में समेट लेती है,
वहां से निकलने नहीं देती है,
मानों भटकाना चाहती है,
यादें फिर गुदगुदा जाती हैं,
तभी दिल कहीं घूम आती है,
सेहर से शब् जाने कहाँ होती है,
मानों भटकाना चाहती है,
अब दिल भी सोच रहा है,
भटकाने का ही इरादा है,
तो क्यों न कहीं भटक आते हैं,
चलो कहीं दूर सैर करके आते हैं !
~ फ़िज़ा 
#happypoetrymonth

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