स्त्री को आम इंसानों जैसा जीने देना !


स्त्री सिर्फ देने का नाम नहीं 
कर्म से और कर्तव्य से कम नहीं 
हाव-भाव में बेशक तुम सी नहीं
फिर भी हर काम में किसी से कम नहीं !
बेटी का रूप लेकर कोई ग़म नहीं 
बेटी, बेहन बन फुली न समायी नहीं 
दुल्हन बन वो बाबुल को भुलाई नहीं 
ससुराल की बनकर रहने में शरमाई नहीं !
प्यार का भण्डार है वो कतराई नहीं 
सहारा देना पड़ा देने से घबराई नहीं 
मुसीबतों से लड़ने से कभी हारी नहीं 
हर काम करने से वो हिचकिचाई नहीं !
बेटी, बेहन, बीवी, बहु, माँ होने से डरी नहीं 
काली का रूप लेकर सीख देने से हटी नहीं 
स्त्री हर मुसीबत को सहने से झिझकती नहीं 
फिर स्त्री को पुरुष जैसी आज़ादी क्यों नहीं ?
कुछ लोग उसे खूसबसूरत कहते हैं 
कुछ लोग उसे चुड़ैल भी कहते हैं 
हर तरह के नाम देकर भी उसे पूजते हैं 
स्त्री को भी इंसान क्यों समझते नहीं ?
आखिर क्यों समझे इंसान स्त्री को 
जब वो सबसे अलग होकर भी अबला है 
सीता से लेकर दुर्गा की छवि रखती है 
हाँ ! हो सके तो स्त्री को आत्मनिर्भर रखना !
उसे अपने हक़ में भी हक़ अदा करने देना !!
स्त्री को आम इंसानों जैसा जीने देना !!!

~ फ़िज़ा 

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