Friday, September 30, 2016

काली की शक्ति हूँ तो ममता माँ की!

जलता तो मेरा भी बदन है 
जब सुलगते अरमान मचलते हैं 
जब आग की लपटों सा कोई 
झुलसकर सामने आता है तब 
आग ही निकलता है अंदर से मेरे 
सिर्फ एक वस्तु ही नहीं मैं श्रृंगार की 
के सजाकर रखोगे अलमारी में 
मेरे भी खवाब हैं कुछ करने की 
हर किसी को खेलने की नहीं मैं खिलौना 
हर किसी के अत्याचार में नहीं है दबना 
कदम से कदम बढ़ाना है मेरा हौसला 
रखो हाथ आगे गर मंजूर है ये चुनौती 
समझना न मुझे कमज़ोर गर हूँ मैं तुमसे छोटी 
काली की शक्ति हूँ तो ममता माँ की 
रंग बदलते देर नहीं गर तुम जताओ अपनी 
मर्दानगी !!!

~ फ़िज़ा 

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