आशाओं से भरी सेहर
निकल पड़ी जैसे लहर
जाना था मुझे शहर-शहर
खुशियों ने रोक ली पहर
निकल पड़ी करने फिर सफर
घुमते-घुमते होगयी फिर सेहर !
शाम की मदमस्त लेहर
हवा की शुष्क संगीत मधुर
लहराता मेरा मन निरंतर
किरणों की जाती नहर
चहचहाट पंछियों के पर
मानो करे कोई इंतज़ार घर पर !!
~ फ़िज़ा
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