सुबह की धुंध और हरी घांस की सौंधी खुशबू
बारिश से भीगी सौंधी मिट्टी की खुशबू
बस आँखें मूँद कहीं दूर निकल जाती हूँ
कुछ क्षण बीताने के बात वक़्त थम सा जाता है
पलकों की ओस जब बूँद बनकर निकल आते हैं
समझो घर लौट आयी !
क्या पंछी भी ऐसा ही महसूस करते हैं ?
जब वो एक शहर से दूसरे तो कभी एक देश से दूसरे
निकल पड़ते हैं खानाबदोशों की तरह
यादों के झुण्ड क्या इन्हें भी घेरते हैं कभी?
जाने किस देश से आती हैं और जाने किन-किन से रिश्ते
काश पंछी हम भी होते? उड़-उड़ आते जहाँ में फिरते
यादों के बादलों संग हम भी दूर गगन की सैर कर आते
फिर महसूस करते मानो, समझो घर लौट आये !!!
~ फ़िज़ा
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