Saturday, April 24, 2021

कब होगी वो सुबह...

 



एक वक़्त ऐसा भी होता था 

जब सुबह का इंतज़ार रहता 

अब डर लगता है के सुबह हो 

तो जाने क्या खबर सुन ने मिले 

ज़िन्दगी अप्रत्याशित हो चली है 

कोवीड महामारी ने सभी को 

असहाय लाचार बेबस मायूस 

दूभर कर दिया जीना सभी का 

सुरक्षा उसका पालन करने से 

कतराते वक़्त आते-आते देखो 

जाने-अनजाने लोग गुज़र गए 

बिना इलाज़ ही  मृत्यु हो गयी 

अनगिनत जवान-बूढ़े लोगों की 

ये दृश्य सपने में भी न देखा कभी 

ऐसा भयानक समय कब थमेगा ?

कब होगी वो सुबह जब ये न होगा ?


~ फ़िज़ा 

8 comments:

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 26-04 -2021 ) को 'यकीनन तड़प उठते हैं हम '(चर्चा अंक-4048) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

Dawn said...

@Ravindra Singh Yadav ji aapka bahut-bahut shukriya meri rachna ko apke sankalan mein shamil karne ke liye.

Abhar!

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

आदरणीया फिजा जी, आशान्वित रहें, ये दिन भी गुजर जाएगा, किसी मौसम की तरह।।।।।
आपका तो नाम ही फिजां है, तो फिक्र क्या? फिजां बदलते वक्त नहीं लगता।
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति हेतु साधुवाद आदरणीया। ।।।

Onkar said...

सुंदर प्रस्तुति

Dawn said...

@पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा Ji bahut bahut shukriya aapke Santavnapurna lafzon ka. Dhanyavaad, Abhar!

@Onkar ji bahut shukriya rachana ko sarahane ka , Abhar!

Meena Bhardwaj said...

बहुत सुन्दर सृजन ।

Himkar Shyam said...

बहुत ख़ूब

Amrita Tanmay said...

हृदय स्पर्शी अभिव्यक्ति ।

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...