गुज़रा ज़माना !


 

याद आता है मुझे गुज़रा ज़माना 

गुज़रे पल और गुज़री कहानियां 

वो सड़कें वो माहौल और वो लोग 

अपने अल्हड़पन पर आता है तरस 

तो कभी लगता है वही सब ठीक था 

गर वैसा सब नहीं होता तब ज़िन्दगी 

वो लोग माहौल तो आज ये न होता 

गुज़रे पलों के उपजे बीज जी अब 

मैं फसल के रूप में काट रही हूँ ख़ुशी 

ज़िन्दगी हसीन है गुज़रे को देख लगता है 

यहाँ से देखूं तो सुकून है कोई खेद नहीं 

गुज़रा ही सही सार्थक है अपनी जगह 

एक एहसास से भरी पोटली है संग मेरे 

गुज़रा ज़माना !


~ फ़िज़ा 


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