पत्थर दिल

 


हूँ तो बहुत बलवान मगर 

दिल भी यहीं कहीं रहता है 

नादान सा मुझ सा बावला 

मगर चाहता भी क्या प्यार है 

यूँ न मेरे हुलिए पर जाओ तुम 


दिखता हूँ मैं कठोर मगर सबको 

हूँ मैं दिल से अच्छा और बेचारा 

प्रकृति की लीला समझो या फिर 

किसी के अन्याय का हथोड़ा मारा 

दर्द न दिखा सका मुंह खुला रह गया !


~ फ़िज़ा 

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