Saturday, April 03, 2021

पत्थर दिल

 


हूँ तो बहुत बलवान मगर 

दिल भी यहीं कहीं रहता है 

नादान सा मुझ सा बावला 

मगर चाहता भी क्या प्यार है 

यूँ न मेरे हुलिए पर जाओ तुम 


दिखता हूँ मैं कठोर मगर सबको 

हूँ मैं दिल से अच्छा और बेचारा 

प्रकृति की लीला समझो या फिर 

किसी के अन्याय का हथोड़ा मारा 

दर्द न दिखा सका मुंह खुला रह गया !


~ फ़िज़ा 

No comments:

वक्त के संग बदलना चाहता हूँ !

  मैं तो इस पल का राही हूँ  इस पल के बाद कहीं और ! एक मेरा वक़्त है आता जब  जकड लेता हूँ उस पल को ! कौन केहता है ये पल मेरा नहीं  मुझे इस पल ...