बीज बनकर तू गिरा अब पेड़ बन गया
धरा से तू ऊगा है धरा में ही जायेगा
जानकर भी हमेशा देता सभी को साया
आसमां की ऊंचाई भाती उस ओर गया
ऊंचाई तक जाकर तनों को नीचे ले गया
जिस थाली में खाया उसका ऋण चुकाया
इतना ही नहीं अनजानों को भी छाया दिया
एक तू ही है जो इंसान नहीं इंसानियत है
सीखा कर भी इंसान इंसान न बन पाया
ऐ वृक्ष तुझे प्रणाम तू मरकर भी काम आया
अर्थियों के लिए तो ठंड दूर करने के लिए
तू देता रहा हर पल हर दम तू जलता ही रहा !
~ फ़िज़ा
6 comments:
खूबसूरत पंक्तियाँ।
निस्वार्थ सेवाभाव तो वृक्ष से सीखना ही चाहिए हम सभी को। सराहनीय रचना हेतु आपका अभिनंदन।
सराहनीय रचना... वृक्ष ही क्यों प्रकृति में इनसानों को छोड़कर सभी संतुलन बनाकर चलते हैं....
खूबसूरत रचना
सराहनीय पंक्तियां।
@Meena Bhardwaj Ji, aapka bahut shukriya meri rachana ko apne sankalan mein shamil karne ke liye. Abhar!
@Nitish Tiwary ji, aapka bahut dhanyavaad , abhar
@जितेन्द्र माथुर Ji, bilkul sahi kaha aapne, dhnayavaad houslafzayee ka , ABhar!
@विकास नैनवाल 'अंजान' ji, sarthak baat kahi dhanyavaad protsahan dene ka, Abhar!
@Onkar ji: Dhanyavaad, Abhar!
@मन की वीणा ji, dhanyavaad, Abhar!
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