Friday, April 09, 2021

दोस्ती


 

कई दिनों से लूटमार चल रहा था 

सोच कर देखा पर पता नहीं चला 

एक दिन अचानक चुपके से देखा 

दोनों हाथों से बटोर कर खाते हुए 

धप! आवाज़ कर उसे भगाया था 

बार-बार नज़र रख कर उसे डराया 

कुछ दिन बाद देखा उसे पेड़ पर जब 

लग रहा था मानों वो शर्मिंदा है खुद से 

सोचा भला प्रकृति से क्या भेद-भाव 

अब वो मुझे दिखा-दिखा कर खाता है 

मगर आँखों की चमक से मोहित करता है 

कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ 

छलांग लगाते फुदकते खेलता गिलहरी !


~ फ़िज़ा 

5 comments:

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

कोमल मन की कोमल अभिव्यक्ति, भावनासिक्त.....

रेणु said...

गिलहरी के प्रति बहुत सुंदर भाव प्रस्तुत किये आपने | अच्छा लगा पढ़कर |हार्दिक शुभकामनाएं

जिज्ञासा सिंह said...

गिलहरी के लिए इतने सुंदर भाव,सुंदर सृजन के लिए हार्दिक शुभकामनाएं । मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है ।

रेणु said...

कई दिनों से लूटमार चल रहा था -- चल रही थी
अब वो मुझे दिखा-दिखा कर खाता है -- खाती है

मगर आँखों की चमक से मोहित करता है --- मोहित करती है

कभी इस तरफ तो कभी उस तरफ
छलांग लगाते फुदकते खेलता गिलहरी !
छलांग लगाती फुदकती खेलती गिलहरी !---

Jyoti khare said...

भावपूर्ण सृजन
बधाई

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...