उम्मीदों से भरा...
महीना अगस्त का मानों उम्मीदों से भरा
शिकस्त चाहे उस या फिर इस पार ज़रा
वैसे भी कलियों के आने से खुश है गुलदान
फूल खिले न न खिले उम्मीद रहती है बनी
हादसे कई हो जाते हैं फिर भी आँधिंयों से
लड़कर भी वृक्ष नहीं हटते अपनी जड़ों से
कली को देख उम्मीद तो है गुलाब का रंग
खिलकर बदल जाए तो क्या उम्मीद तो है
कम से कम !
~ फ़िज़ा
Comments
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (10 अगस्त 2020) को 'रेत की आँधी' (चर्चा अंक 3789) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
लाजवाब सृजन
आपका हार्दिक आभार !
आपका हार्दिक आभार !
बहुत अच्छी प्रस्तुति