Saturday, August 08, 2020

उम्मीदों से भरा...




महीना अगस्त का मानों उम्मीदों से भरा 
शिकस्त चाहे उस या फिर इस पार ज़रा  
वैसे भी कलियों के आने से खुश है गुलदान 
फूल खिले न न खिले उम्मीद रहती है बनी 
हादसे कई हो जाते हैं फिर भी आँधिंयों से 
लड़कर भी वृक्ष नहीं हटते अपनी जड़ों से 
कली को देख उम्मीद तो है गुलाब का रंग 
खिलकर बदल जाए तो क्या उम्मीद तो है 
कम से कम !

~ फ़िज़ा 

20 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 09 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर सृजन

Anuradha chauhan said...

बहुत सुंदर

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (10 अगस्त 2020) को 'रेत की आँधी' (चर्चा अंक 3789) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव

Anonymous said...

वाह!!!
लाजवाब सृजन

Dawn said...

@yashoda Agarwal: मेरी रचना को सांध्य दैनिक मुखरित मौन में, स्थान देने का बहुत बहुत शुक्रिया.
आपका हार्दिक आभार !

Dawn said...

@सुशील कुमार जोशी ...आपका हार्दिक आभार !

Dawn said...

@Anuradha chauhan: आपका हार्दिक आभार !

Dawn said...

@Ravindra Singh Yadav: मेरी रचना को 'रेत की आँधी' (चर्चा अंक 3789) में, स्थान देने का बहुत बहुत शुक्रिया.
आपका हार्दिक आभार !

Dawn said...

@Anonymous: आपका हार्दिक आभार !

प्रतिभा सक्सेना said...

आसा,तृष्णा ना मिटी कह गए दास कबीर .

अनीता सैनी said...

बहुत ही सुंदर सृजन।

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

वाह ! बहुत खूब

कविता रावत said...

उम्मीद पर तो दुनिया कायम है,
बहुत अच्छी प्रस्तुति

Meena Bhardwaj said...

बहुत सुन्दर सृजन .

Dawn said...

@प्रतिभा सक्सेना: आपका हार्दिक आभार !

Dawn said...

@अनीता सैनी: आपका हार्दिक आभार !

Dawn said...

@गगन शर्मा, कुछ अलग सा: आपका हार्दिक आभार !

Dawn said...

@Kavita Rawat: आपका हार्दिक आभार !

Dawn said...

@Meena Bhardwaj: शुक्रिया.आपका हार्दिक आभार !

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...