Saturday, April 02, 2016

उसने फूल भेजे थे पिछले इतवार


उसने फूल भेजे थे पिछले इतवार 
मैंने सोचा चलो नयी है शुरुवात 
हर पल यही दुआ रही रहे साथ 
न हो खट -पट न हो बुरी बात 
जैसे गुज़रा दिन डर भी रहा साथ 
सोमवार से शुक्र तक गुज़री ये रात 
आया शनिवार बदला मौसम हुई बरसात 
फिर आया इतवार तब समझी ये बात 
पुष्पांजलि लेके आये थे देने मुझे इस बार 
मैं ही पागल थी, समझी नहीं पुष्पांजलि है मेरी सौगात !

~ फ़िज़ा 

No comments:

ज़िन्दगी जीने के लिए है

कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही  ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है  देखा जाए तो खाना, मौज करना है  फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब  क्या ऐसे ही जी...