तुम्हारी चंचल अठखेलियों से
वक़्त अच्छा गुज़र गया जैसे
याद तो है मुझे, माँ तो हूँ वैसे
मगर कब तुम संग खेलते ऐसे
मैं रेह गयी बच्ची तुम संग जैसे
जाने कब, तुम हुए तेरह के ऐसे
बस आँखों के सामने ही जैसे
देखते बढ़ गए वो नन्हे हाथ-पैर
जल्दी ही छू भी लोगे मेरे काँधे
और बढ़ भी जाओगे वहां से आगे
थोड़ा धीरे बढ़ो, थोड़ा खेलने दो
कुछ देर और मेरा बचपन सेहला दो
मेरे नन्हे फ़रिश्ते!
तुम रहोगे सदा इस दिल में वही
नादाँ, भोले, प्यारे सभी को भाते
नन्हें राही ! जन्मदिन मुबारक हो!!!
~ फ़िज़ा
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