Wednesday, January 06, 2021

बस ढूंढ़ती फिरती हूँ

 



मोहब्बत सी होने लगी है अब फिर से 

लफ़्ज़ों के जुमलों को पढ़ने लगी हूँ जब से 

जाने क्या जूनून सा हो चला है अब तो 

बस ढूंढ़ती फिरती हूँ उस शख्स के किस्से 

अलग ही सही कुछ तो मिले पढ़ने फिर से

एक दीवानगी सा आलम है अब तो ऐसे 

जब से पढ़ने लगी हूँ एक शख्स को ऐसे 

~ फ़िज़ा  

4 comments:

Dawn said...

@अनीता सैनी :आपका बहुत शुक्रिया मेरी रचना को अपनी शृंखला में शामिल करने का
आभार

सधु चन्द्र said...

वाह!
क्या बात।

Abhilasha said...

बहुत ही सुन्दर रचना

Dawn said...

@सधु चन्द्र : shukriya aapka

@Abhilasha : behad shukriya aapka


Abhar!

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...