मोहब्बत सी होने लगी है अब फिर से
लफ़्ज़ों के जुमलों को पढ़ने लगी हूँ जब से
जाने क्या जूनून सा हो चला है अब तो
बस ढूंढ़ती फिरती हूँ उस शख्स के किस्से
अलग ही सही कुछ तो मिले पढ़ने फिर से
एक दीवानगी सा आलम है अब तो ऐसे
जब से पढ़ने लगी हूँ एक शख्स को ऐसे
~ फ़िज़ा
4 comments:
@अनीता सैनी :आपका बहुत शुक्रिया मेरी रचना को अपनी शृंखला में शामिल करने का
आभार
वाह!
क्या बात।
बहुत ही सुन्दर रचना
@सधु चन्द्र : shukriya aapka
@Abhilasha : behad shukriya aapka
Abhar!
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