मौसम की तरह वो बहार बनके आया
खिलता हुआ तो कभी फलता हुआ आया
जिसे देखता वो उन्हें अपने पास लाता गया
मिलनसार था वो मौसमों की तरह लेहराता गया
फिर ना चाहते एक वो मौसम भी आया
पतझड की तरह वो उसे भी साथ ले गया
दरख्त की तरह तो दरस की तरह यादें छोड़ गया
बैठें हैं उसकी छाँव में आज यादें ही सिर्फ रेहा गया
~ फ़िज़ा
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