अक्षरों से खेलते-खेलते ...!
अक्षरों से खेलते-खेलते
कब ये शब्द बन गए
पता ही न चला!
शब्दों की लड़ियों ने
जाने क्या नए मायने
सीखाए!
मैं अक्षरों से खेलती रही
शब्द मेरे संग खेलते रहे
यूँ ही !
जाने क्या सोचकर
वो मुझ से दिल लगा बैठे
मैं भी यूँ ही !
अांखमिचोली में कब
एक-दूसरे के हो गए
पता ही नहीं !
किसी ने कहा पद
किसी ने कविता
जाने क्यूँ ?
सोचते-सोचते शाम
ढल चुकी फिर न सोचा
जब चांद निकल अाया !!
~ फ़िज़ा
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