ज़मीन पर गिरतीं हैं बूँदें
जाने कितने ऊंचाइयों से
कितने सपने संग लिए
क्या-कुछ देने के लिए
मचलती छलकाती हुई
एक से दो, दो से हज़ार
लड़ियाँ घनघोर बरसते
कहलाते बरखा रानी
जो जब झूम के बरसते
ज़मीन को मोहित करते
पेड़ों-गलियों में बसकर
फूलों के गालों को चूमकर
रसीले भवरों से बचाकर
जैसे-तैसे गिरकर-संभलकर
हरियाली फैलाते ये बूँदें
कभी वर्षा, कभी वृष्टि
बनकर सामने आते !
~ फ़िज़ा
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