हर दिन एक नया चैप्टर हो !




क्या है ये नया साल ?
सब क्यों उतावले हैं ?
क्या कुछ बदल गया ?
क्या बदलने वाले हो ?
वही घिसेपिटे संकल्प दिखाने
के ?
जो कभी होते नहीं
पुरे ?
फिर भी एक लम्बी
सूचि बनती है
हर साल और हर बार
सूचि लंबी होती है
जब सबकुछ कल पर
छोड़ा है तब
नए साल और नया परिवर्तन
का हंगामा क्यों?
बेकार के ढकोसले, बेकार
के सब ड्रामे
बेफिक्र होकर हर पल
को जियें
मोहब्बत करने से न
कतराएं
ख़ुशी हाथ आये न आये,
दें ज़रूर किसी को
न कोई लिस्ट हो
न उसे पूरा करने का
स्ट्रेस हो 
बस हर दिन एक नया
चैप्टर हो !

~ फ़िज़ा

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