ख़ुशी हमेशा अपने अंदर है




बहुत दिनों की बात है 
अक्सर बचपन साथ है 
कभी बचपन के बीते दिन 
बचपन में परिवार संग 
कुछ रीती-रिवाज़ जो 
बनी हमारी आदतें तो 
कुछ अनुशासन बनकर 
जीवन में आजतक रहे 
काम की मसरूफियत 
कभी आलस की वजह 
साथ कभी होने न पाए 
घर से बाहर सैर पर 
सब निकलते घूमते 
मगर घर के अंदर कभी 
एक साथ बैठकर खाना 
एक साथ बैठकर खेलना 
नसीब नहीं होता हरपल 
मगर देख लो ! अब सब 
करोना की महामारी से 
नियम का पालन करते
घर पर सिमित जब रहे 
तो हर कोई परिवार में 
अपनों के संग हरपल 
बिताये सारा दिन एक साथ  
कभी कैरम खलेते तो 
कभी लूडो मोनोपोली 
गर इन सबसे ऊब गए 
तो साथ वाकिंग पर चलते 
उठना-बैठना वो भी प्यार से 
मानों प्रकृति खुद कहने लगी 
क्या भूल गए वो दिन?
बुरा ही सही मगर फिर भी 
करोना के शुक्र तो सभी है 
जो एक-दूसरे को साथ लायी 
पुराने सिलसिलों को दोहराने 
याद कराने जैसे चली आयी 
यही उम्मीद है के ये सीख 
करोना की बदौलत रखें याद 
ख़ुशी हमेशा अपने अंदर है 
बाहर तो केवल भटकते हैं 


~ फ़िज़ा 

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