Monday, April 13, 2020

यमुना से दुरी बनाये रखो ..!



यमुना जल्दी में तो थी ही 
जाते हुए खाने को पूछ गयी 
घर का पका गोश्त और ब्रेड 
पहला भोजन खाया सा लगा
खाकर नींद की तैयारी में थी 
रात को फिर मिलेंगे केहा गई 
सर्दी ज़ोरों से थी मगर खुश थी 
भोजन पेट में निंदिया आँखों में 
कब आँख लगी पता भी न चला 
खुली आँख तो मेरा नाम सुना
यमुना काम से आगयी थी फिर  
कमरे का दरवाजा खोला मैंने 
नींद हो गयी ये तस्सली हुई तो 
आपस में परिचय हुआ हमारा  
एक-दूसरे को गले भी लगाया 
सच्चाई थी उसकी मुस्कान में 
केन्टुकी फ्राइज में केशियर थी 
देर रात की शिफ्ट वाली नौकरी  
सब परख ही रही थी अब भी मैं 
उसकी कहानी नसीहत भी सुनी 
सेहर हुई जब शुभरात्रि कहा हमने 
असल सवेरा हुआ जब पादरी आये 
नाश्ते का वक्त था सो ऊपर ले गए 
नाश्ते के साथ कुछ नियम भी सुनाये  
खाना मुफ्त में खाओ यहाँ आकर 
मगर रहने का किराया दो ज़रूर और  
यमुना से दुरी बनाये रखो तो अच्छा 
ये सुनकर ताज्जुब और हैरानियत हुई 
समझा के 'येशु' मेरे लिए एक ही था 
मगर वो पेंटेकोस्टल और कैथोलिक थे 
नज़रअंदाज़ कर दिया, के पादरी ने कहा 
रविवार को चर्च जायेंगे, तुम भी चलना  
पहले समझा तो लूँ 'येशु' ने क्यों त्याग 
दिया था जीवन अपना ?
  
फ़िज़ा  

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