अगला निमंत्रण...!


अगले दिन उन्मुखीकरण है मोवेनपिक में 
विचार-विमर्श के लिए पादरी ने बुलाया
कहा गया मेरा कमरा ऊपर होगा अब से,
घर के तहखाने से ऊपरी मंज़िल की ओर,
ये तो हुई तरक्की और खुश हुई इस बात पे 
क्या कहें यमुना भी स्थान परिवर्तन कर रही थी,
एक दिन में इतने परिवर्तन संभालना मुश्किल था 
 न्यूनतम तन्ख्वाव में है तो भी नयी नौकरी लगी है 
परन्तु यमुना को अब रोज देख भी न पाऊँगी मैं 
यकीन नहीं होता मगर दिल अंदर से खुश न था 
अजीब सा महसूस हो रहा था जैसे पेट में हो दर्द 
और तुम्हें पता नहीं होता के उलटी होगी अब के.. 
समझ ही गए होंगे मैं क्या कहा रही हूँ भयानक सा 
उसी रात मेरा कमरा ऊपरी मजले में बदला गया 
छोटा सा कमरा, एक बिस्तर, एक मेज़ और कुर्सी 
एक कोठरी की दीवार जिस पर येशु मुझे घूरते हुए 
मुझे ये सब एक जानबूझकर किया षड़यंत्र सा लगा 
यमुना को न अब देख पाऊँगी न ही बात कर पाऊँगी 
येशु के घूरने से तंग आकर मैं उसी से प्यार कर बैठूं?
शुरुवात के लिए ये एक अच्छी मानसिक यातना रही 
अगले दिन तैयार होकर नौकरी के लिए घर से निकल रही थी  
पादरी ने पूछ-ताछ की कहाँ जा रहे हो? अभी मैं नयी हूँ यहाँ
अपनी नयी नौकरी की बात की और उन्होंने कहा घबराओ नहीं 
येशु सबका ख्याल रखेगा सुनते ही  मैंने लपक कर पुछा -
क्या येशु मेरा किराया देंगे आपको? और वो मुस्कुरा दिए !
मैंने कहा आपको किराया देने के लिए मुझे नौकरी करनी होगी 
इस बीच जो भी वक्त मिलेगा अनुवाद मैं करती रहूंगी 
इस बात से वो ठीक थे जो भी समायोजन था और मैं निकली 
रिचटरी इंक कंपनी के मुख्यालय, टोरंटो शहर मैं पहुंची 
वहां एक रिसेप्शनिस्ट थी जो की भारतीय थी 
मैं उन्मुखीकरण के लिए इंतज़ार कर ही रही थी 
उस भारतीय स्त्री ने पुछा मैं महाराष्ट्र से हूँ? मराठी भाषी हूँ?
आमतौर पर मैं न कहा देती मगर मैंने हाँ कहा, मैं पुणे से हूँ 
वो खुश हुईं और कहने लगी वो बॉम्बे से है, क्या मराठी जानती हो?
मुझे अच्छी मराठी आती है सो हामी भरी और फिर क्या था 
अगला निमंत्रण ही मिला घर पर दावत के लिए !

~ फ़िज़ा 

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