ज़िन्दगी चाहती क्या है ?
कुछ भी तो नहीं हमसे
फिर भी जाने क्यों बोझ
ढोये चलते हैं हम इंसान
सामान पुराना कांधों पर
फिर ग़मों का क्यों न हो
अहंकार का ही क्यों न हो
हम बोझ ढाये जाते हैं और
फिर एक महामारी आती है
और सबको, सभी को वो
अपनी औकात दिखाती है
केवल इंसान हैं जो सिर्फ
जी कर मर सकते हैं !
~ फ़िज़ा
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