ज़िन्दगी मेट्रो में


ज़िन्दगी टोरंटो में मेरे लिए साहसी रही 
जब शहर में नए और अनिश्चित हो तब डरपोक भी 
मैं  और भी बुरा सोचती इस वजह से सतर्क ज्यादा थी
उस रात जब मैं किंग स्ट्रीट से रवाना  हुई थी,
मार्ग नया था और समय भी मेरे लिए नया ही था 
सच कहूं तो, मैं डरी हुई थी इसीलिए सतर्क भी थी
जब सतर्क हों तब सभी को शक्की नज़र से देखते हैं 
मैं स्ट्रीटकार में घुसी, वो खाली थी  बिलकुल,
कभी आपको खालीपन से घबराहट हुई है ?
यहाँ स्ट्रीटकार का ड्राइवर था, एक बेघर इंसान 
और मैं !
उसने पेशाब कर रखी थी पतलून में और घुर रहा था मुझे 
अंदाज़ा लगा सकते हो के मेरा क्या हाल हो रहा था तब ?
ऐसा अनुभव हर रोज़ का था मेरे लिए, 
नयी जगह, नया दिन, नया अनुभव,
एक ऐसा अनुभव जो अपने देश में नहीं महसूस किया,
इस बात से बड़ी हुई थी के हर चीज़ को संदेहयुक्त देखो 
ज़िन्दगी तो हमेशा अनुचित होती है, मैंने हमेशा उससे ज्यादा बुरा सोचा 
इस वजह से भी मैंने हमेशा बुरे वक़्त में भी उपाय ढूंढ़ना सीखा,
यही बात मेरे हमेशा किस्मत से काम भी आयी,
 हर रात जब मैं बस से उतरती थी 
दोनों तरफ देख भागने लगती थी 
चारों तरफ अँधेरा और सन्नाटा भी होता 
अगर आप सोचें तो वो एक तनावपूर्ण रात होती थी 
तनावग्रस्त जब घर पहुंचती और पॉल बेर्नाडो के बारे में सुनती 
एक औरत के लिए आसान नहीं है और अकेली तो बिलकुल भी नहीं 
फिर भी, सभी बाधाओं से मैंने अपनी रक्षा करना ही सोचा,
मुझे याद है, जिस दिन से पॉल बेर्नाडो की कहानी सुनी,
मैंने हर रात एक नयी चाल सोचती घर पहुँचने तक 
जैसे ही कार को अपनी ओर आते देखती, मैं पास वाले घर में चली जाती
नज़दीक के घर में ऐसे जाती मानों वो मेरा ही घर है 
और जैसे ही कार चली जाती मैं तेज़ी से अपने घर की और दौड़ती 
अपनी रक्षा करना जैसे मानो हर बार कोई चाल चलना दूसरों से !

~ फ़िज़ा 

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