Monday, April 12, 2021

काश!

 



काश!


काश जब वो पहली बार चिल्लाकर 

बात कर रहा था तब रोक लेती उसे 

या हाथ उठाकर मारने आया तभी 

उसकी मर्ज़ी और मेरी एक नहीं थी 

शायद, मुझे जान लेना चाहिए था 

की उसका ग़ुस्सा ठीक नहीं है या 

उसका तरीका और उसकी सोच 

सही नहीं है मेरे हित के लिए काश 

काश मैं तब संभल गयी होती तो 

मुझे यूँ फ़ना नहीं होना पड़ता था 

जान लेना था लोग तमाशा पसंद हैं 

अपनी रक्षा आप स्वयं करना है 

काश! ये जान लेती और उस पर  

भरोसा न कर अपने पर भरोसा 

ज्यादा करती तो शायद मैं उन 

वीडियो और कैमेरा में सबूत 

बनकर नहीं रहा जाती काश!

काश! ये दुनिया जीवन और  

उसका का मेहत्व जान पाती 

किसी स्त्री पर हाथ उठाने से पहले 

उन्हें उनकी अपनी माँ नज़र आती 

काश! काश ! काश!


~ फ़िज़ा 

4 comments:

विश्वमोहन said...

संवेदना की गहन अभिव्यक्ति!!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

काश पहली बार ही पकड लिया होता उठने वाला हाथ ... भावमयी रचना .

Dr (Miss) Sharad Singh said...

स्त्रीपक्ष की महत्वपूर्ण रचना...

चैत्र नववर्ष पर हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🙏🌹

Dawn said...

Pammi ji aapka behad shukriya meri rachna ko apni shrinkhala mein shamil karne ke liye.
Abhar!

Vishvamohan ji bahut bahut shukriya
Abhar!

Sangeet ji dhanyavaad,
Abhar!

Dr. Sharad ji bahut shukriya aur aap ko chi navvarsh ki shubhkamanayein
Abhar!

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...