ज़िन्दगी की ख्वाइशें
यूँ सेहर बनके आयीं
के एक-एक करके
किरणों की तरह यूँ
आँखों में गुदगुदाते
मंज़िलों को ढूंढ़ते
यूँ निकल पड़े ऐसे
जैसे परिंदों को मिले
आग़ाज़ जो पहुंचाए
उन्हें उनके अंजाम तक
सेहर यूँही आती रहे
अंजाम के बाद फिर
नए आग़ाज़ के साथ
~ फ़िज़ा
2 comments:
Kya baat......
Shukriya
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