Sunday, April 21, 2019

सेहर यूँही आती रहे ..!



ज़िन्दगी की ख्वाइशें
यूँ सेहर बनके आयीं 
के एक-एक करके 
किरणों की तरह यूँ  
आँखों में गुदगुदाते 
मंज़िलों को ढूंढ़ते
यूँ निकल पड़े ऐसे 
जैसे परिंदों को मिले 
आग़ाज़ जो पहुंचाए 
उन्हें उनके अंजाम तक 
सेहर यूँही आती रहे 
अंजाम के बाद फिर 
नए आग़ाज़ के साथ 

~ फ़िज़ा 

2 comments:

Harpreet Babbu said...

Kya baat......

Dawn said...

Shukriya

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...