चला था मैं किस डगर
क्या सोचके क्या खबर
धुप है या छाँव न खबर
आग है या दरिया न डर
निकले थे कोख़ से या घर
चलना है, आगे जो है नगर
ठहरता है कौन यहाँ मगर
जब मंज़िल है कहीं और
जाना है मुझे अभी और दूर
जहाँ न कोई दर-ओ-दीवार
न सीमाओं का हो कभी डर
ऐसा एक आज़ाद हो नगर
जहाँ करते रहना है सफर
~ फ़िज़ा
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