Thursday, April 11, 2019

चला था मैं किस डगर



चला था मैं किस डगर 
क्या सोचके क्या खबर 
धुप है या छाँव न खबर 
आग है या दरिया न डर 
निकले थे कोख़ से या घर 
चलना है, आगे जो है नगर 
ठहरता है कौन यहाँ मगर 
जब मंज़िल है कहीं और 
जाना है मुझे अभी और दूर 
जहाँ न कोई दर-ओ-दीवार  
न सीमाओं का हो कभी डर 
ऐसा एक आज़ाद हो नगर 
जहाँ करते रहना है सफर 

~ फ़िज़ा 

No comments:

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...