कली का जीवन भुला नहीं ...!



था कली के रूप में मैं भी 
फूल बनने से पहले ही 
छू लिया था किसी ने 
तोड़ मगर नहीं सका मुझे 
सोच मगर थी कली जैसी 
सो हुआ नहीं मेरा फूल 
फूल बनकर जब आयी मैं 
कली का जीवन भुला नहीं 
लोग देखें फूल को मगर 
फूल को देखा किसी ने नहीं 
था कली के रूप में मैं भी 
अक्स न देख पाया कोई भी 
खुशबु थी बस मुस्कान जैसी 
खुशबु मगर ली किसी ने नहीं 
था कली के रूप में मैं भी 
फूल बनने से पहले ही 
छू लिया था किसी ने 
तोड़ मगर नहीं सका मुझे !

~ फ़िज़ा 

Comments

Harpreet Sandhu said…
Wah.......
Dawn said…
Shukriya!

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