ज़िन्दगी के रास्ते ही हैं टेढ़े-मेढ़े




ज़िन्दगी के रास्ते ही हैं टेढ़े-मेढ़े 
यहाँ कहाँ किसी से ये संभले 
जब रास्ते ही हों टेढ़े-मेढ़े !
ज़िन्दगी खुद दगा देती है 
अब कोई और क्या देगा दे 
बस सोचो यही है रास्ते सबके 
और यही है सबका चलन 
कभी कोई संभल जाए तो 
कहीं आकर थम जाए फिर 
कोई संभलते इन्ही रास्तों पर 
निकल पड़ें और फिर गिर पड़े 
रास्ते हैं अनजाने और राही भी 
ऐसे में एक-दूसरे पर हो इलज़ाम 
ज़िन्दगी के रास्ते ही हैं टेढ़े-मेढ़े 
यहाँ कहाँ किसी से ये संभले 
जब रास्ते ही हों टेढ़े-मेढ़े !

~ फ़िज़ा 

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