ज़िन्दगी के कुछ कदम अकेले



ज़िन्दगी के कुछ कदम अकेले 
चले तो हैं अपने बल पे अकेले 
कभी डरके,थम के कभी संभलके 
सोचा नहीं आगे-पीछे बस चले 
तरह-तरह के जगह लोग मिले 
हादसों से, हरकतों से सबक मिले 
ज़िन्दगी और साथी कौन समझ लिये 
वक़्त गुज़रे थम के गुज़रे तो बरसके 
ज़िन्दगी हकीकत सलीके से समझे 
अपने पराये में फरक करीब से समझे 
गुज़रते रहे रास्तों से और वक़्त गुज़रते 
किसी से गिला नहीं बाईस साल गुज़रे
वक़्त के तकाज़े ने साफ़ दिखलाये 
ज़िन्दगी शिकायत की वजह भी न दिये 
शुक्रगुज़ार ऐ ज़िन्दगी तेरा और ये रास्ते  
कभी न रुकते चाहे हम न साथ चले तेरे 
ज़िन्दगी न छोड़े बेशक हम रास्ते बदलें 
कभी ज़िन्दगी जियें तो कभी मौत लिए !

~ फ़िज़ा 

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