कल आज में गुज़र गया
ख़्याल था मगर भूल गया
एक से एक तमाम होगया
अंजाम ये के वक़्त खो गया
बोलते सोचते निकल गया
कल आज में बदल गया
मेरी कविता का प्रण ये के
आज एक नहीं दो होगया
कविता का ये महीना अब
यूँ ही सही सफल हो गया !
~ फ़िज़ा
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