आवाज़ बनो !


मसले ढूंढो तो मिलेंगे हज़ार 
कहीं महंगाई है तो कोई बेकार 
खाने को है कम बिमारी हज़ार 
मसले ढूंढो तो मिलेंगे हज़ार !

कभी सबकुछ हो तब भी कमी है 
हरदम तलाश उसकी जो नहीं है 
भरपेट भोजन पर शराब में धुत हैं 
कभी सबकुछ हो तब भी कमी है !

सबकुछ देखकर भी करना अनदेखा 
जानकर भी के अन्याय है चुप रहना 
जहाँ चले घूसखोरी से काम चलाना 
सबकुछ देखकर भी करना अनदेखा !

कब तक सब देखकर रखेंगे आँखें मूंदे ?
जागना आज नहीं तो कल इंसान जो हैं
बगावत की लपटें आग की तरह फैलेंगी 
कब तक सब देखकर रखेंगे आँखें मूंदें?  

बहुत कम हैं जो औरों के लिए सोचते हैं 
बहुत ज्यादा लोग चुप रहकर सहते हैं 
उनकी आवाज़ बनो न्याय के लिए लड़ो 
बहुत कम हैं जो औरों के लिए सोचते हैं !

~ फ़िज़ा 

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