बिखर गया है जीवन सारा
ऐसा ही कुछ लगता है अब
जन्में कहीं पले -बढे भी वहीं
किसका रास्ता ढूंढ रहे थे
जाने-अनजाने चले आये यहाँ
रोटी, कपडा और मकान तलाशे
जैसे-तैसे बसाया घर अपना
अपने घर को ही भूल गए
सदियों हुए फले -फुले
यहीं शायद बिखर भी जाएं
किसको है मंज़िल का पता
आये हैं तो जायेंगे भी फिर
बस बारी-बारी जाना है
बिखर गया है जीवन सारा
ऐसा ही कुछ लगता है अब
ऐसा ही कुछ लगता है अब !
~ फ़िज़ा
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