केसरी रंग ये शाम की



केसरी रंग ये शाम की 
करती है बातें इशारे की 
कभी कहती है रुक जाओ 
के अभी ढलने में वक़्त है 
तो अभी ढल रही है शाम 
कल आने की लेती है कसम
इस जाने आने के सफर में 
इस ढलने में और बहलने में 
कितने अरमानों का आना 
कितने अंजामों का जाना 
हर रंग के रंगों में ढलकर 
देती है संदेसा बदलकर 
देख लो आज जी भरकर 
कल का रंग फिर नया होगा 
नए रंगों से नया श्रृंगार होगा 

~ फ़िज़ा 

Comments

Popular posts from this blog

मगर ये ग़ुस्सा?

फिर बचपन सा जीना चाहती हूँ...

प्रकृति का नियम