Monday, April 08, 2019

एक आशियाना ऐसा भी हो


एक घरोंदा हर कोई चाहे 
इंसान हो या पशु-पक्षी 
एक जगह जो अपनी हो 
छोटी हो फिर जैसी भी हो 
कहने को बस वो अपनी हो 
ख़ुशी के आँसूं, दुखों के घूँट 
पी लेंगे वो खाली बर्तनों में 
खिलता-फूलता सा जीवन 
बना लेंगे वो मिल-जुलकर 
क्या मांगे वो ज्यादा किसी से 
सिर्फ चाहे एक अपना घर जो 
एक सुरक्षित मेहफ़ूज़ अपनी हो 
कहने को भी रहने को भी जो 
ढूंढते हैं हम सभी जगह पर 
हर गाँव, शहर, देश और गली 
बना लेते घरोंदा जहाँ मिले टहनी 
एक आशियाना ऐसा भी हो 
जहाँ रहे छोटे-छोटे सपने 
खिलते खुशियों के कली और फूल 
आते तब भंवरें गुन -गुन करके 
मधुमक्खियों की बातें होतीं 
छोटी सी मगर मधु जैसे बातें होतीं 
एक घरोंदा हर कोई चाहे 
इंसान हो या पशु-पक्षी 
एक जगह जो अपनी हो 
छोटी हो फिर जैसी भी हो 
कहने को बस वो अपनी हो !

~ फ़िज़ा 

No comments:

खुदगर्ज़ मन

  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है  अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है  फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! ...