ख्वाबों की कश्ती पर सवार
लहराते गोते खाते हुए पतवार
थिरकते उड़ते हवा से बातें करते
किसी हलके से रुमाल की तरह
समाने लगे पहाड़ों से दरख्त से होकर
उसे कोई न दे सका आसरा हवे पर
ख़ुशी - ख़ुशी लोट गए सब ज़मीं पर
ज़मीन ने कमीं न की उनके सत्कार में
यूँ देखते हो गए एक, हसीं वादियां
ज़मीन और बादलों का मिलन देखो
इंसान-इंसान से न मिल पाए ऐसे
अफ़सोस फ़ज़ा दिखा के नमूना हमें
हमीं न सीख पाए अपनों से मिलनसार !
~ फ़िज़ा
No comments:
Post a Comment