बरसों बाद आज खूब हँसे
कुछ हम-उम्र थे साथ और
बड़े भी मगर फासले कम
दोस्ती ज्यादा अपनापन भी
मिले थे भोजनालय में सब
बातों की लड़ियाँ जो बनी
बनती ही गयी एक से एक
हंसी के फव्वारे निकल पड़े
बस कुछ देर तक बचपन
जवानी के पल यूँ लहराए
वक़्त का न हुआ अंदाज़
कब घंटों बीत गए और
याद आया एक मीटिंग
जो है अब बॉस के साथ
पल में सोचा भाग के पहुंचे
फिर जल्दी से किया मैसेज
थोड़ी देर में पहुँच रहे हैं जनाब
दोपहर के भोजन में अड़के हैं
और फिर वोही शरारत हंसी
जन्नत की सैर कर आये थे
और ऐसे एक झलकी जैसे
सब ख़त्म हुआ और आगये
दफ्तर का मेज़ कुछ लोग
और काम !
~ फ़िज़ा
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