सेहर की लहर में थी रवि की लालिमा
सुनहरे बालों में जैसे फूल गुलाब का
चहकती पक्षियाँ संगीत का समां बांधे
दूर से जैसे बुलाती हुई रेल की सिट्टियाँ
सुबह की हलचल हर तरह की जल्दी
ऐसे में एक गरम -गरम प्याली चाय की
नाश्ते के दो अंडे फिर गड़बड़ी में भागे
गाड़ियों की टोली उनमें हरी-लाल बत्ती
जो पहुंचाए हर किसी को उनकी मंज़िल
शुरू होती है सेहर से और ख़त्म शाम पर
दिन-रात की ये पहेली चले यहाँ से वहां तक !
~ फ़िज़ा
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